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      बह रहीं शीतल हवाएँ

बह रहीं शीतल हवाएँ कोहरे के गीत गाएँ
रश्मि-रथ ठहरा हुआ है बादलों सँग मुस्कराएँ

बर्फ जैसे जम गए हैं
जिन्दगी के पल सुनहरे
धूप पर प्रतिबंध जारी
उर्मियों पर लगे पहरे
रम्य धरती डरी, सहमी, पिघल जायें हिम-शिलाएँ
बह रहीं शीतल हवाएँ कोहरे के गीत गाएँ

हर किसी की कामना है
ऊष्मा लाए उजाले
यामिनी ठिठुरे नहीं अब
हों धवल दिन शीत वाले
रूठकर बैठा शिविर में चलो सूरज को मनाएँ
बह रहीं शीतल हवाएँ कोहरे के गीत गाएँ

रजत जैसी चंद्रिका हो
लौट आयें स्वर्ण से दिन
भास्कर उत्कर्ष पर हो
चहचहाने लगें पल-छिन
व्योम तक सीढ़ी लगाकर
रश्मि-रथ को हाँक लाएँ
बह रहीं शीतल हवाएँ कोहरे के गीत गाएँ

- प्रो. विश्वम्भर शुक्ल

१ दिसंबर २०२१
     

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