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बड़ा
बेवफा माघ |
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ठंडी के अतिरेक पर, लगा
धूपिया बांध
आधे माघे चढ़ गया, कंबल सबके कांध।
कभी वसंती धूप सा, कभी बन गया सर्द
बड़ा बेवफा माघ है, देता ऐसे दर्द।
सर्दी की वर्दी कभी, कभी वसंती ताज
बना रहे हैं चित्र सा, बैठ माघ महराज।130
माघ महीने में धरे, सुघड़, सुकोमल रूप
शीत-शत्रु को काटती, निकली स्वर्णा धूप।
गिरा शीत की झालरें, गढ़े खुशी का स्तूप
ऊर्जा देती चाय सी, हमें माघ की धूप।
विपदा सदा गरीब पर, कहें कहावत घाघ
उधर जलाया जेठ ने, इधर गलाया माघ।
लील रहा है सूर्य को, बना माघ हनुमान
बर्फ गिराते माघ से, काँपे सकल जहान।
१ दिसंबर २०२५ |
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