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        माघ ने दस्तक दी

 
माघ ने सुबह सबेरे
दस्तक दी
ठिठुरती देह को गुनगुनी
धूप ने ताजगी दी

आसमान में धुंध कोहरा छाया
गुलाब का फूल खिल कर इतराया
नदी के तट पर मेले लग रहे हैं
भीड़ के रेले दिख रहे हैं
गहरे पानी में जनता डुबकी लगा रही है
नदियाँ अब अपने भाग्य पर इठला रही है
तिल गुड़ खाने का
मौसम आया

मकर संक्रांति का पर्व आया
सूर्य भी उत्तरायण हो गया
किरणों में अब तेज आ गया
पौष मास ने शुभता में रोक लगाई थी
माघ ने आकर ढोल और शहनाई बजाई थी
कहीं कहीं बरसता मावठा काश्तकार को लुभा रहा है
अच्छी फसल देख कर मन
हर्षा रहा है

- संजय सुजय बासल
१ दिसंबर २०२५

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