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        शीत ने पारा जमाया

 
माघ लेकर धुंध आया साथ अपने
शीत ने पारा जमाया

दुबक बैठा
कोटरों में त्रस्त खगकुल पंख मोड़े
पसर कुहरा हर दिशा में रश्मियों का दंभ तोड़े
शीत ने प्रस्ताव पारित कर गलन के
धूप को हाँका लगाया

साग बथुआ
गुड़ गजक का स्वाद मुँह में लगा घुलने
टोपियों, मफलर रजाई के लगे सन्दूक खुलने
नेह ने फंदे कसे उनसे लिपटकर
देह ने फिर ताप पाया

भा रहे कुछ को
मगर कुछ के लिये यह दिन कड़े हैं,
हैं इकाई एक लेकिन वस्तुतः यह दो धड़े हैं
एक मौसम ने धरा के मंच पर क्यों
दो तरह का राग गाया

- अनामिका सिंह
१ दिसंबर २०२५

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