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         सुखद है माघ महीना

 
माघ मास की महुआ मीठी, गंध लिये
अरमान जगाती

गगन रजाई
सितारों भरी ओढ़े, तार छेड़ती, गाती
प्रेम तरंग उठी तनमन में रसना संग संग ललचाती
काले बादल बनी कढ़ाई, रजनी गरम
पकोड़े खाती

कैद पिया में
होने चल दीं लहरें सागर में न समाती
माघ मास ठिठुराया ऐसा कभी गरम सी हवा लुभाती
बाँट जोहती गर्मी, ठंडक! ’विदा’ कहा,
काहे ना जाती

मेघा काले-
काले दिखते धूम्रपान जंगल में होता
अर्ध-कुंभ में पुण्य दिलाने ठंडे जल-प्रवाह का न्योता
किटकिट दाँत बजे, पेड़ संग, होंठ
भींचकर लता नहाती

- हरिहर झा
१ दिसंबर २०२५

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