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        सर्दियाँ गाने लगीं सोहर

 
माघ आया भर पुआलें लग गया बिस्तर
सर्दियाँ सोने लगीं सटकर

पाँच धोती चार साड़ी सिल गई गुदड़ी
झुग्गियों की हो गई हैं छातियाँ चौड़ी
गुड़मुड़ाये लाल-मुनिया सोए तर-ऊपर
सर्दियाँ गानें लगीं सोहर

थे लगे लाइन में कल मिल जाए एक कंबल
ठिठुरती माँ, गुदड़ियों का वह बने संबल
लूट कुछ ऐसी मची, मच ही गई भगदर
सर्दियाँ लुटनें लगीं जमकर

ख़ैर छोड़ो छोड़ने में जो मज़ा, वह बात
कौन किसका है समय पर कौन देता घात
गर्मियाँ संग सर्दियों के काटतीं चक्कर
सर्दियाँ हँसने लगीं खुलकर

सर्दियों के फायदे को जानता गेंहूँ
तेल-दलहन कह रहे आ बाँह में कस लूँ
अंक में अपने छुपा लूँ बन मेरी रहबर
सर्दियाँ लगने लगीं प्रियवर

- जिज्ञासा सिंह
१ दिसंबर २०२५

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