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         चलो चलें पंजाब

 
चलो चलें पंजाब
माघी वहीं मनाएँ

मक्की रोटी
सरसों साग देसी घी में खाएँ
शक्कर मेवों से गुंथी हुई चूरी को भी ललचाएँ
दोपहरी में गन्ना चूसें शाम मूँगफली पाएँ
तिल के लड्डू और खजूरें, गचक रेवड़ी खाएँ
चलो चलें पंजाब
माघी वहीं मनाएँ

इसी माघ में
लोहड़ी आती घर- घर जले अलाव,
गिद्दा भंगड़ा लोकगीत सब मिलजुल गाएँ चाव
जा पहुँचें छत पर संग लेकर माँझा डोर पतंग
आसमान गुलजार है सारा पेचे सभी लडा़एँ
चलो चलें पंजाब,
माघी वहीं मनाएँ

- मधु संधु
१ दिसंबर २०२५

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