अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

        माघ मास के दिन

 
परम पावनी गंगा तट पर
बीते माघ मास के दिन
ठिठुराती जाडे की रातें
सिहराते हैं हर पल छिन

प्रात-काल का स्वर्णिम सूरज
रंगे माघ मास के दिन
सूरज की किरणो का उत्सव
रचते माघ मास के दिन

शीत भयंकर सिहराती तन
कंपित गात पात हैं उन्मन
उष्मा की तलाश में जीवन
जीते माघ मास के दिन

ओस भरी बिखरी हरीतिमा
फूल फूल सोया मौसम
भोर तले तुहिनों से बातें
करते माघ मास के दिन

- पद्मा मिश्रा
१ दिसंबर २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter