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        मौसम की पटरानी

 
दबे पाँव चुपके से आयी मौसम की पटरानी
जाड़ा ओढ़ दुशाला आया
सपनों की गुड़धानी

सूरज की पहली किरणों ने हल्दी के थाप लगाए
गंगा तट पर बजे घंटियाँ मंगल गीत सुनाए
इत्र उड़े फूलों-सा मन में झरे ओस का पानी
दबे पाँव चुपके से आई
मौसम की पटरानी

सरसों पीली खड़ी खेत में मंद मंद मुस्काए
हरियाली का चुग्गा खाकर मुर्ग़ा बाँग लगाएँ
भोर, नववधू सी लगती धूप लगी नूरानी
दबे पाँव चुपके से आई
मौसम की पटरानी

रोज़ दुपहरी अलख जगाकर पंखों को फैलाये
डाली पर बैठी चिड़िया गीत प्रेम की गाये
कोमल कमसिन माघ सखी री पवन करे मनमानी
दबे पाँव चुपके से आई
मौसम की पटरानी

ढलता सूरज चित्रकार है नभ सिन्दूरी थाली
चूल्हे पर सिकती रोटी गंध अलावों की प्याली
हवा सरसराती पत्तों से झींगुर कहे कहानी
दबे पाँव चुपके से आई
मौसम की पटरानी

धीरे धीरे लुढ़का पारा रात शबनमी गहराई
तारे नभ में दीप जलाते चंदा उतरे अँगनाई
कस्तूरी सी रातें महकीं बेला रातों की रानी
दबे पाँव चुपके से आई
मौसम की पटरानी

- शशि पुरवार
१ दिसंबर २०२५

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