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         रश्मि-रथ को हाँक लाएँ

 
माघ की शीतल हवाएँ
बादलों सँग मुस्कराएँ

बर्फ जैसे जम गए हैं
जिन्दगी के पल सुनहरे
धूप पर प्रतिबंध जारी
उर्मियों पर लगे पहरे
रम्य धरती डरी, सहमी
पिघल जायें, हिम-शिलाएँ

हर किसी की कामना है
ऊष्मा लाएं उजाले
यामिनी ठिठुरे नहीं अब
धवल हों दिन शीत वाले
रूठकर बैठा शिविर में
चलो सूरज को मनाएँ

रजत जैसी चंद्रिका हो
लौट आएँ स्वर्ण से दिन
भास्कर उत्कर्ष पर हो
चहचहाएँ विहग अनगिन
व्योम तक सीढ़ी लगाकर
रश्मि - रथ को हाँक लाएँ

- प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
१ दिसंबर २०२५

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