अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ममतामयी
विश्वजाल पर माँ को समर्पित कविताओं का संकलन 

 

 

 

 


अलविदा माँ

दूर सुदूर बसी यादों में फिर डूबी उतराई माँ
रिश्तों के झुरमुट में खोई, छुईमुई मुरझाई माँ।

मन अथाह सागर सा तेरा, अनगिन भावों का आगार,
माप सका है कोई कहाँ उस ममता की गहराई माँ।

तुझसे सुने कहानी किस्से फिर बचपन में पहुँचाते हैं,
उन वक्तों को याद किया, तो फिर आँखें भर आई माँ।

तेरे होने पर कब समझा, तुझको खोने का अहसास
तड़पन और घुटन दे जाती गुपचुप तेरी विदाई माँ।

चेतन मन की चिंताएँ सब, हुई शांत, जब साँस रुकी
बन्धन टूटे, अपने छूटे, छूट गई परछाई माँ।

थमी हुई साँसों ने तेरी गहन मर्म यह समझाया,
भीड़ भरी सारी दुनिया में, होती क्या तनहाई माँ।

--ओम प्रकाश नौटियाल 
१५ अक्तूबर २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter