अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

कुंडलिया

 

 

 
सेवा माँ की सुत करे, स्वर्ग मिले सौगात
दुनिया माँ से है चली, राम कही ये बात
राम कही ये बात, जड़ी जग बूटी माता
कुटिल न आवे लाज, तोड़ते माँ से नाता
कह समोद कविराय, जगत मैं माँ है मेवा
झोली भर लो आज, मात की करके सेवा।

-समोद सिंह चरौरा

मिलता मनचाहा अगर सिर पर माँ का हाथ 
बच्चे बनते हैं सबल जो हो माँ का साथ 
जो हो माँ का साथ, सामना करते डट कर 
पाते हैं संस्कार अहम से रहते बच कर 
माँ से पा आशीष प्यार से बचपन खिलता 
कहती 'सरिता' मान खुदा भी माँ में मिलता 

- सरिता भाटिया

माँ की ममता का नहीं, जग में कोई मोल
फिर भी बेटे बोलते, माँ को कड़वे बोल
माँ को कड़वे बोल, वेदना देते भारी
करते जो ये पाप, तोड़ दें उनसे यारी
माँ है रब का रूप, खोलती जग को झाँकी
मिला न जिनको प्यार, जानते कीमत माँ की

-रघुविन्द्र यादव
२९ सितंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter