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तुम्हारे जैसी

 

 

 

तुमने प्यार दिया उसके पीछे छिपा दर्द नहीं कहा—
जीवन की रातें ठंडी तो हैं
पर असहनीय सर्द नहीं
सदा रखी मन में मुस्कान
इसलिए आज तुम्हारे चेहरे पर उभरी
दर्द की हल्की-सी रेखा भी देख पाती हूँ मैं
और जब मेरे चेहरे की उस हल्की रेखा को
पढ़ लेता है मेरा बड़ा होता बेटा तो सुख होता है
सोचकर कि माँ
शायद मैं कुछ-कुछ तुम्हारे जैसी बन पाई!

क्यों माँ
माँ! तुमने सब कुछ सिखाया
एक-एक क़दम आगे बढ़ना अपनी हथेलियों पर
बढ़ती हुई रेखाओं में दिखाया
अनुभव सुख
अपमान रेखाओं में गहरा होता
दर्द नहीं दिखाया
क्यों माँ?

क्यों नहीं डाँटा तुमने बिना ग़ल्ती किए
क्यों नहीं टोका तुमने बात को समझे बिना
क्यों तुम समझ जाती हो मन की हर बात
क्यों अचानक चुप होकर
नाराज़ी नहीं दिखातीं
क्यों नहीं लगने देतीं
हृदय को आघात क्यों?

काश! तब तुमने ये किया होता
तो अब
मैं सह लेती सब
पर फिर सोचती हूँ माँ!
कल मेरी बेटी ने मुझसे यही प्रश्न किया तो?

- गीतिका गोयल
२९ सितंबर २०१४

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