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हे महाशक्ति

 

 

 

हे महा शक्ति
हे कल्याणी!
ज्योतिर्मय अमृत-घट भर दो
जीवन सारा रस मय कर दो

मैं दीप सुमन
परिमल विहीन
कुंकुम अक्षत
नैवेद्य हीन...
मैं शक्ति हीन, मैं तेज हीन
सुषमा विहीन, सौरभ विहीन
मैं हृत सर्वस्वा, अकिंचना
इन चरणों में
अब शरणों में
हे क्षमा, शिवा
ममता, करूणा
अभिशाप पाप हर लो हर लो!
स्वीकार आज कर लो लो!

भावों में श्रद्धा
सी बिखरो
निखरो मन में
उज्ज्वलता सी
स्वप्नों में, छाया सी लहरो
चेतनता में चंचलता सी
शुचिता सी
श्वासों में बहती
उषा सी
प्राणों के तम में
हे सरस्वती
वरदान मयी
वाणी अमृत सरसो सरसो!
हे महा देवि हरषो हरषो!

अर्चना, वन्दना
ऋचा मन्त्र
सब अंग साधना
अश्रु बनी
अभिलाषाएँ, आकांक्षाएँ
आशीष नहीं अनुताप बनीं
सर्वस्व समर्पित
अभिनंदन
आलोक प्रभा
धारा उर में
हे शक्ति मयी!
अनुराग मयी!
सौभाग्य राग भर दो, भर दो!
सम्पूर्ण आज कर दो, कर दो!

- रंजना गुप्ता  
१५ अक्तूबर २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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