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माँ का एक शाश्वत रूप

 

 

 

ममता करुणा नेह अँखियों में
अधरों पे धर विजयी गीत
माथे तिलक लगा कर चूमूँ
जग में होगी तेरी जीत।

हिंसा अत्याचार आतंकी
शत्रु का नित नूतन वेश
फहराना सद्भाव पताका
जड़ से उखड़े बैर-द्वेष
धरो हाथ में कृष्ण चक्र तुम
दानव भागें हो भयभीत।

हर माँ की निज संतानों से
रहे सदा इतनी सी आस
रक्षा-सेवा धर्म-कर्म हो
निज शक्ति में हो विश्वास
ज्ञान दीप की लौ जलाना
दीन दुखी के बनना मीत।

बाधा मुश्किल रोकेंगी पथ
झुके कभी ना तेरा शीष
वीर कथाएँ सम्बल देंगीं
कवच बनें मेरे आशीष
रणचण्डी सी संग रहूँगी
याद रहे पुरखों की रीत
हो जग में तेरी ही जीत।

- शशि पाधा
१५ अक्तूबर २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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