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तुम निष्ठुर हो
     

 





 

 


 




 


हे कृष्‍ण तुम निष्‍ठुर हो
कहने को तुम प्रेमी हो
पर प्रेम कहाँ तुम कर पाए
राधा संग रास रचाकर
गोकुल को प्‍यासा रख आए

हे कृष्‍ण तुम निष्‍ठुर हो
माँ कहकर गोद हरी कर दी
माखन की मटकी गली गली
फोड़ उसे तुम तर आए
फिर छोड़ किसे तुम घर आए

हे कृष्‍ण तुम निष्‍ठुर हो
रणछोड़ नहीं तुम पूर्ण हो
इस प्रेम धरा की भूमि पर
कौन भला चित चोर हुआ
पाकर भी सबकुछ छोड़ चला
खोकर भी सबको पा चला

हे कृष्‍ण अब प्रेम संदेश हमें भी दो
रण भूमि पर ज्‍यों गीता के संग
रचा तुमने एक नए अर्जुन को
अपनी प्रेम गीता से रच दो
प्रेम में पगी नव गोपी को

- प्रवीणा जोशी
२६ अगस्त २०१३

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