अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ऊधौ बदल गया बृजमंडल
     

 





 

 


 




 


भाँय -भाँय करता वृन्दावन वंशी के स्वर विह्वल
ऊधौ ! बदल गया बृजमंडल।

गोकुल नंदगाँव बरसाना जहाँ रंभाती गैया
ग्वाल-बाल मुरली की धुन पर करते थे ता-थैया
चूड़ी के संग रार मचाती रोज मथानी भैया
प्रात कलेवा माखन मिसरी देती जसुमति मैया
देखे बिना श्यामसुंदर को
राधा का मन चंचल।

तरु कदम्ब थे जहाँ उगे हैं कंकरीट के जंगल
राकबैंड की धुन पर गाते भक्त आरती मंगल
जींस टॉप ने चटक घाघरा चोली कर दी पैदल
दूध दही को छोड़ गूजरी बेंचें कोला मिनरल
शाश्वत प्रेम पड़ा बंदीगृह
नये चलन उच्छ्रंखल।

--रामशंकर वर्मा
२६ अगस्त २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter