अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

जमुना लहरिहें ना
     

 





 

 


 




 


रिमझिम रिमझिम घन घिर अइहो
मोरी जमुना जुड़इहें ना।
मद्धिम मद्धिम जल बरसइहो
मोरी जमुना अघइहें ना।

कदम के नीचे श्याम खड़े हैं
मुरली अधर लगाये
बँसिया बाज रही बृंदाबन
मधुबन सुध बिसराये
हौले हौले पवन चलइहो
मोरी जमुना लहरिहें ना।
रिमझिम रिमझिम घन घिर अइहो
मोरी जमुना जुड़इहें ना।

रस बरसइहो बरसाने में
भीजें राधा रानी
गोपी ग्वाल धेनु बन भीजें
भीजें नन्द की रानी
झिर झिर झिर झिर बुन्द गिरइहौ
मोरी जमुना नहइहें ना।
रिमझिम रिमझिम घन घिर अइहो
मोरी जमुना जुड़इहें ना।

डॉ. पवन विजय
१८ अगस्त २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter