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						तुम्हीं ने किया था 
						उस फटेहाल गठरी 
						को खुषहाल कभी 
						झाड़कर उसके सारे  
						दुःख, दर्द अपने दामन में 
						तुम्हीं ने  
						बदल दिया था उसे 
						हाथों हाथ राजमहल में 
						निकाल दी थी 
						उसकी तमाम आलूदगी 
						निचोड़ कर कालिय को 
						उसकी धमनियों से़ 
						एकदिन  
						 
						सुना है तुम्हीं ने  
						बचाई थी  
						एक दिन  
						उसकी लाज 
						द्वापर की खाप पंचायत में 
						 
						लेकिन आज वह 
						हो रही है बेदखल  
						फिर से  
						मॉल, मल्टीप्लेक्स,  
						और कभी 
						सेज के नाम पर 
						फैशनेबुल विकास की  
						तेज और बहुत तेज रफ्तार में 
						किया जा रहा है  
						उसे बेपर्द समय की  
						मांग बताकर  
						 
						लगा रही है वह  
						फिर से तुम्हारी गुहार 
						लेकिन  
						उसे मालूम नहीं शायद  
						कि रास आने लगा है  
						तुम्हे भी  
						टॉपलेस व रिमिक्स की  
						रासलीला 
						और अब तुम  
						नहीं आओगे उसे बचाने  
						लाख गुहराने पर भी 
						क्योकि  
						तुम भी हो गए हो  
						छोटे और खोटे 
						हादसा दर हादसा 
						हमारी संवेदनाओं की तरह 
						-- शंभु शरण मंडल 
						३० अगस्त २०१०  |