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नये वर्ष की कामना
(दोहे)
 
भोर सुनहरी उत्सवी, अब हो कायाकल्प।
नये वर्ष में कामना, साधें शुभ-संकल्प।

अनाचार की बेल का, हो समूल अब नाश।
नये वर्ष में कामना, टूटें दुख के पाश।

कब तक वे पीड़ा सहें, कब तक अत्याचार।
नये वर्ष में कामना, मिलें उन्हें अधिकार।

शोषित-वंचित वर्ग को, समुचित मिले प्रकाश।
नये वर्ष में कामना, सूरज से है आस।

साहस का सम्मान हो, अनाचार का अंत।
नये वर्ष में कामना, जग हो जाए संत।

सबके हित की बात हो, हो सबसे संवाद।
नये वर्ष में कामना, मिट जाएँ प्रतिवाद।

करिए चिन्तन देशहित, बनिए स्वयं समर्थ।
नये वर्ष में कामना, समय न करिए व्यर्थ।

बैर मिटे संशय मिटे, मिटे कलुष-दुर्भाव।
नये वर्ष में कामना, हो समता-सद्भाव।

नैतिकता की जीत हो, अन्यायी की हार।
नये वर्ष में कामना, जीते सच हर बार।

फिर से अपना देश यह, बने जगत सिरमौर।
नये वर्ष में कामना, बढ़ें कदम कुछ और।

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'  
१ जनवरी २०१७

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