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आइये नव वर्ष का स्वागत करें
 
फिर नई
उम्मीद के झोले लिए
देहरी पर ज्यों नवागन्तुक खड़ा
आइये नववर्ष का स्वागत करें।

सिर्फ अभिनय ही रहा है वर्ष भर
नाटकों का हर सफल मंचन हुआ
कथ्य की संवाद से दूरी बढ़ी
दर्शकों की दृष्टि का मंथन हुआ।

बज रहे
करताल ऊँची कोठियों में
न्याय पर अन्याय का पर्दा पड़ा
आइये नववर्ष का स्वागत करें।

छीनकर बहरे समय के हाथ से
साँप सीढ़ी की सुनहरी गोटियाँ
एक अर्वाचीन निष्ठुर सत्य से
कर रहीं परिवाद रूखी रोटियाँ

दिन रिहर्सल
कर रहे संघर्ष का
भूख ने संत्रास का ताला जड़ा
आइये नववर्ष का स्वागत करें।

डूबते दिनमान की दहलीज पर
धुंध का उपवास वाला आचरण
भोर तक विश्वास कोरी धूप का
हो गया है चीर का जिसके हरण

ताप असहज
हो उठा है सूर्य का
शीत का संताप हरने पर अड़ा
आइये नववर्ष का स्वागत करें।

- अवनीश त्रिपाठी 
१ जनवरी २०१७

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