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हर्ष है आकर्ष है
 
हर्ष है आकर्ष है उत्कर्ष है
मुदित मन से आ रहा नव वर्ष है

संकुचित सा सूर्य प्राची में उगा
रश्मियों का ताप भी कुछ मंद है
सज गयी वसुधा नये श्रृंगार से
जगत के हर प्राण में संघर्ष है!

सुरमई चूनर में लिपटी है उषा
नत नयन आरक्त मुख है लाज से
हैं बिखेरी पाँखुरी हो उल्लसित
अरुण रथ पर आ रहा नव वर्ष है!

आरती के थाल में रवि दीप धर
प्रकृति माँ स्वागत को उत्सुक है खड़ी
पधारो नव वर्ष ड्योढ़ी पर मेरे
है मुदित वसुधा प्रफुल्लित अर्श है!

पंछी दल हैं कर रहे अभ्यर्थना
तार सप्तक में मिला कर स्वर सभी
गा रहे भँवरे विशद विरुदावली
द्रुत गति से आ गया नव वर्ष है!

- साधना वैद      
१ जनवरी २०१७

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