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संवत बदले
 
 
दीवारों पर टँगे कैलेण्डर
हुए पुराने
संवत् बदले।

कई-कई राजे,रजवाड़े
जिनके तम्बू गए उखाड़े
सत्ता के सिंहद्वार कभी थे
दिन काटेंगे अब पिछवाड़े

शीश झुकाये,मुकुट गँवाये
गए जहाँ भी
स्वागत बदले।

सैनिक-सेना-सेनानायक
दरबारी-मन्त्री-कवि-गायक
निभा रहे हैं तत्परता से
नई भूमिका सुविधादायक

राजा-रानी,राजपुरोहित
राज तिलक के
अच्छत बदले।

चीजों से चीजों के रिश्ते
नहीं एक जैसे ही रहते
जनपथ बने राजपथ यूँ ही
फटी एड़ियाँ घिसते-घिसते

जनमत ने सत्तायें बदलीं
सत्ताओं ने
जनमत बदले।

- गणेश गम्भीर    
१ जनवरी २०१८

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