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 गीत गाएँ
 
 
विगत के सभी दर्द दुख भूल जाएँ
नये प्रात के अब चलो गीत गाएँ !

चढ़ा व्योम पर धुंध का आवरण जो
हुआ सूर्य के तेज का अपहरण जो
दिया क़ैद तूफान की मुट्ठियों में -
लगा नेह के चाँद को है ग्रहण जो

छँटे धुंध इनकी, कटें बंध इनके
प्रबल मुक्ति की हों सुसंभावनाएँ .

सजा आज हर हाथ है पत्थरों से
कुटिल दहशतें झाँकती हैं घरों से
कहीं भीड़ में खो गई चेतना है -
सभी बेखबर वेदना के स्वरों से

न अब दृग मुँदें देखकर दुख किसी का
हृदय की न हों सुप्त संवेदनाएँ .

बहुत बुन चुके जर्जरित आस्थाएँ
बहुत गुन चुके संकुचित प्रार्थनाएँ
बहुत जी चुके वक़्त की त्रासदी को-
बहुत ढो चुके ध्वंस की हम ध्वजाएँ

खड़े अब कि जब साथ में नव सदी के
नया हो सृजन, हों नयी कल्पनाएँ .

- जय चक्रवर्ती  
१ जनवरी २०१८

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