अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 चलो गुलदस्ता दे दें
 
 
नये साल ने
ग्रहण किया पदभार
चलो गुलदस्ता दे दें

सपन हमारे
अर्जी ले अब
इसके पास ही जाएँगे
रूठ गया यदि यही
तो फिर
वे किससे आस लगाएँगे

क्या मालूम
इसी के पग
हम सबको इच्छित रस्ता दे दें

सुना
बहुत कुछ लेकर
इसके दिवस-महीने आए हैं
पिछले वालों से
हम सब ने
वचन अधूरे पाए हैं

माँगें चलकर इनसे भी
हो सकता
पूरा, सस्ता दे दें

नयी हवा से
कदम मिलाने
हमें निखरते जाना है
बीते को
इतिहास को देकर
वर्तमान को गाना है

कर्मों के कंधों को
नवता का
प्यारा सा बस्ता दे दें

- कुमार गौरव अजीतेन्दु 
१ जनवरी २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter