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आ गए नव वर्ष
 
 
आ गए नववर्ष
आओ स्वागत इच्छुक तो सभी थे
रात से ही

ओ सुखद प्रारब्ध
लाए उस हथेली के लिए क्या
आज जिसके भाग्य की रेखा सदा
गँदली रही है

ओ सुनहरी
धूप की किरचन कहो क्या
उस अँधेरे हेतु जिसको
दीपकों के स्वप्न का भी हक़ नही है

यदि नहीं है एक भी कम्बल
किसी हतभाग्य के हक का
आज जाओ
लौट जाओ
तब इन्हें ढाढ़स न होगा
बात से ही

ओ नए मधुमास
के वाहक सुनाओ हाल उनके,
हाथ जिनके ओस से भीगे
अलावों में जड़े हैं

ओ उषा की लालिमा
क्या भर सकोगी उत्सवों के रंग भी
जो चीखते अवसाद
जीवन में अड़े हैं

यदि नहीं है
हाथ में जादू
अभावों को भुलाने का
तो कहीं से
सीख कर आओ
उगाना हास्य सूखे गात से ही

नीरज द्विवेदी    
१ जनवरी २०१८

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