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नवल वर्ष के दिनकर
 
हे ! नवल वर्ष के दिनकर

तेरे कण-कण को वंदन
करें विगत स्वप्न ,दें ज्ञापन
आगत के स्वागत में व्याकुल
फिर कुछ आशाओं का आँगन
नव-किसलय रूप में ढलकर
हे! नवलवर्ष के दिनकर

वो गढ-प्राचीरें या घाटी
चलती उजियारा परिपाटी
बिन भेदभाव जगमग जग कर
थी स्वर्ण उगलती माटी
मिले राम-राज की झलक भर
हे! नवलवर्ष के दिनकर

बीतेगी रजनी अँधियारी !
मिट जायेगी वेदना सारी !
खुशियों का मधुमास लिये
उतरेगी नववर्ष सवारी !
क्या आँखों में ज्योति बनकर
हे! नवल वर्ष के दिनकर

- परमजीत कौर 'रीत'   
१ जनवरी २०१८

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