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झोली में भर लें
 
नए साल की स्वर्ण रश्मियाँ
आओ हम झोली में भर लें

शुभ प्रभात की पावन बेला
मन बंजारा सा अलबेला
चाह रहा है अभी कुछ समय
और जरा सी झपकी ले लें

नए साल की स्वर्ण रश्मियाँ
आओ हम झोली में भर लें

कुछ बीते लम्हों की यादें
शेष रह गए हैं कुछ वादे
साथ लिए उनको चलना है
आस पास भी देखें भालें

नए साल की स्वर्ण रश्मियाँ
आओ हम झोली में भर लें

निशा बीत गई सपना बन कर
उग आया अब नूतन दिनकर
निज बाहें फैलाकर आओ
मुक्त हृदय से स्वागत कर लें

नए साल की स्वर्ण रश्मियाँ
आओ हम झोली में भर लें

- सुरेन्द्रपाल वैद्य     
१ जनवरी २०१८

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