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        साल पुराना

 

आया तो था सीधे रस्ते
बीच डगर में भटक गया
बीस-बीस के अंकों वाला
बरस शुक्र है सरक गया

कोई देश या कोई दिशा हो
कोना-कोना झाँक रहा
नियम व्यवस्था किसने तोड़ी
सबकी पुस्तक जाँच रहा
खोले जिसने द्वार ड्योहढ़ी
अजब बीमारी पटक गया

गले लगे न हाथ मिलाये
छह गज़ दूरी बनी रही
नाक मुँह थे पर्दे में पर
भृकुटि उसकी तनी रही
चिंता पीड़ा भूख लाचारी
भरी पिटारी झटक गया

जाते जाते ओ निर्मोही!
नेक काम इक कर जाना
जादू की इक छड़ी घुमाना
रोग हीन जग कर जाना
जाने क्यूँ लगता है जैसे
जाते-जाते अटक गया
लगता था कि सरक गया

- शशि पाधा
१ जनवरी २०२१

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