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         दिवस नवेला

 
दिवस नवेला द्वार खड़ा है
लिए हाथ में स्वर्णिम रूप

हरी घास पर मखमल सजता
शबनम मोती सा फ़िर लगता
कभी कोहरा घर बिछ जाए
कभी धूप का सेक है लगता
मौसम भी जो रंग बदलता
मन को लगते सभी अनूप

संत सरीखे देवदार हैं
बर्फ ढँके ऊँचे पहाड़ हैं
गिरीं पत्तियाँ झुरमुट वाली
सरगम गातीं, तरु उजाड़ हैं
अंगड़ाई लेकर आँगन में
पसर गई है उजली धूप

सुना तुम्हारे शहर दिसंबर
उजला उजला-सा रहता है
मेरे ठिठुरे शहर में भेजो
यहाँ अँधेरा सा रहता है
सर्द हवा भी गाल बजाती
ठिठुरन का जैसे प्रतिरूप

- मंजुल भटनागर
१ जनवरी २०२२

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