अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

         नव पल्लव नव भोर

 
नव पल्लव नव भोर खिलेगी
गान विहग नव
तब गाएँगे

रंग निशा का भी गहरा था
अलकों पर भी इक पहरा था
सूर्य किरण में वो चमकेंगे
नर्तन करते सपन सजेंगे
चले गए जो पल अलबेले
भीग रहे हैं नयन लजीले
धीर धरो सब समझायेंगे
वापस इक दिन
सब आएँगे

शीत बयार रही भटकाये
ताप हृदय का मन दहकाये
सृजन गान तब नवल करेंगे
विहग उड़ान नभ में भरेंगे
तिमिर घना हो चाहे कितना
कंटक चुभते चाहे जितना
तरु पर नव पल्लव आएंगे
सृजन सतत है
बतलायेंगे

- निवेदिता निवि
१ जनवरी २०२२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter