अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

         नववर्ष की नव अल्पना

 
नववर्ष की नव अल्पना में
तुम करो नव कल्पना

नव सुखद सपने सँजो लो
प्रीत के नव रंग घोलो
द्वार, आँगन, घर, गली में
तुम करो नव सर्जना

प्रेम के सब पत्र बाँचें,
अनवरत भर-भर कुलाँचें
नृत्य का सा हो समां
कोई न हो फिर वर्जना

जो गए पल, खो गए कल,
सामने अब खड़ा है कल
समझकर इसको कीमती
मित्र! खोना-ख़र्चना

कोई रूठे औ' न छूटे
छोड़िए सब दम्भ झूठे
है अशोभन बिना बरसे
गरजना ही गरजना

- राममूर्ति सिंह 'अधीर'
१ जनवरी २०२२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter