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         नये साल की अगवानी

 
धूप हवा के पंखों पर ठिठकी जाती है
नये साल की अगवानी
करती आती है

उथल पुथल कर गया वर्ष है अभी अभी
नए साल में शुभ हो मंगल काज सभी
किरण कोहरे से छन छन सकुचाती है
मगर साँझ तक कौतूहल
बरसाती है

अभी विश्व ने सेतुबंध पहचाना है
राम कृष्ण की धरती को कुछ माना है
युगों युगों की यह संस्कृति संपाती है
दुख धरती का नभ से
कहने जाती है

यश अक्षुण्ण भारत का सालों साल रहे
कालकूट पीकर भी उजला भाल रहे
स्वच्छ हवा गंगा की निर्मल पाती है
भीगी भीगी सुबह ओस
दे जाती है

- डॉ. रंजना गुप्ता
१ जनवरी २०२२

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