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          संजीवन घुट्टी

 
अब की बार जो आओ पाहुन
चैन सबूरी बाँध के लाना
ऐ नये बरस! कुछ भूल न जाना

लगता जैसे इस धरती को
दूषण का कोई ग्रहण लगा है
जिद्दी से ये राहू-केतु
घुले हवा में, खूब ठगा है
जादू की कोई छड़ी घुमाना
दिया वचन तुम भूल न जाना

बहुरंगी- बहुरूपी कोई
भेस बदल कर छिपा खड़ा है
विष भीगे बाणों से उसके
मानुष कितनी बार लड़ा है
साधो कर निर्बाध निशाना
अपना कौशल भूल न जाना

तुम तो अन्तर्यामी मीता
वैद हकीमी तुम ही जानो
संजीवन घुट्टी नुस्खे का
मंतर क्या तुम ही पहचानो
पास तेरे अनमोल ख़जाना
धीरज-संयम भूल न जाना

- शशि पाधा
१ जनवरी २०२२

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