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         लिखो तुम

 
ठिठुरन ठिठुराती बैठी है
किंतु घाम के नाम
लिखो तुम
बैठो मत संकोच ओढ़कर
नये साल के नाम
लिखो तुम!!

नये साल में नया नहीं कुछ
केवल अंक बदल जाते हैं
तनिक खुशी की चाहत में बस
मन के भाव मचल जाते हैं
उम्मीदों की आस लगाए
जो हैं उनके नाम
लिखो तुम!!
आश्वासन के मीठे सपने
अब तो धुँधले से लगते हैं
अपने ही अपनों को जमकर
मानो छलते से लगते हैं
छाछ फूंक पीने वालों को
ख़त में जरा प्रणाम
लिखो तुम!!

किंतु शेष ईमान धरम जब
सबको सुख सम्मान मिलेगा
है पूरा विश्वास नव बरस
नहीं किसी को कभी छलेगा
अपनी मंजिल पाने खातिर
घूमें चारों धाम
लिखो तुम!!

- श्रीधर आचार्य शील
१ जनवरी २०२२

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