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नव वर्ष अभिनंदन
2007

नव वर्ष तुम आओ

         

नए नव वर्ष तुम आओ
तुम्हें शुभकामना मेरी
कहीं पर भी न आँसू हो
यही है प्रार्थना मेरी।

खुशी से भी कहीं ज़्यादा
अभी तक ग़म दिए सबने
किए साकार भी कुछ तो
मगर तोड़े कई सपने
कहीं आहत न हो जाए
सुनो फिर भावना मेरी।
तुम्हें शुभकामना मेरी!!

मरुथल से पहाड़ों तक
समंदर से कछारों तक
खुशी फैले उजाला हो
धरा से चाँद तारों तक

करो साकार तुम इसको
यही है कल्पना मेरी।
तुम्हें शुभकामना मेरी!!

कलम बिकने नहीं पाए
भले खामोश हो जाए
कलम जब-जब उठे तब-तब
सृजन के गान ही गाए
कलम ज़िंदा रहे सबकी
कलम हो साधना मेरी।
तुम्हें शुभकामना मेरी!!

कमलेश भट्ट कमल

  

प्यार के छींटे

सूरज उतरा
नव किरणों संग
देने रोशनी
जन-जन में।

भूलो दुख
व द्वेष भावना
जो भी हो
अपने मन में।

थकन निराशा
व सूनापन
कभी न आए
आँगन में।

नए साल के
नए दौर में
पंछी विचरें

प्रांगण में।

ऊँची रहे
उड़ान हमारी
रहे सफल हम
जीवन में।

प्यार के छींटे
बरसे सब पर
जैसे बरखा
सावन में।

भावना कुँअर

 

 

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