| नव अभिनंदन गए वर्ष की
कगार पर खड़ीराह तकती
गुंजयमान हैं
 दसों दिशाएँ
नव अभिनंदन को
 मानव संस्कृति के आयाम
 अब रूप बदलेंगे
 सहस्त्रदल कमल राह में बिछेंगे
 शीशवंदन को
वर्तमान प्रतिबिंबित है
 आनेवाले कल के चेहरे में
 आतंकित न हो
 कलिकाल के भयावह चेहरे से
 अकथनीय अनुभवों को संजो ले
 शब्दों में न ढाल
 कहीं अपार्थिव क्षणों में
 शब्दों को पंख न लग जाए।
 कल आकाश की नीलाभ अलिप्तता को छोड़कर
 अभ्युत्थान होगा
 नव सूर्य की किरणों का धरा पर
 उद्वेलित समय की कालिमा को हटा
 प्रकाश छाएगा
 नूतन वर्ष हृदय में हर्षोल्लास के फूल
खिलाएगा
 प्रत्येक युग पुरुष का ललाट
 होगा दैदीप्यमान
 शुभ लाभ कल्याण के
 पुण्य मंत्रों का होगा उच्चारण
 निर्मल निर्झरणी बहा लाएगी
 पुन: पावन इतिहास
 शुभ कामनाओं से परिपूर्ण होगा
 मानव प्रयास
 वीणा विज 'उदित' |