अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नव वर्ष अभिनंदन

नया साल

         

इस साल हमने बहुत सोचा विचारा
यहाँ तक कि अपना सर तक दीवार पे दे मारा
बहुतों से पूछा बहुतों ने बताया
फिर भी यह रहस्य समझ में नहीं आया
कि कल और आज में अंतर क्या है
आख़िर इस नए साल में क्या नया है

वही रोज़ की मारामारी
जीवन जीने की लाचारी
बढ़ती हुई महँगाई
सरकार की सफ़ाई
राशन की लाइन
ट्रैफ़िक का फाइन
गृहस्थी की किचकिच
आफ़िस की खिचखिच
सड़कों के गढ्ढे
नेताओं के फड्डे

लेफ्ट की चाल
बेटी की ससुराल
मुर्गी या अंडा
अमरीका का फंडा
खून का स्वाद
धर्म का उन्माद
एक सा अख़बार
फिर मर गए चार
राष्ट्रगान का अपमान
मेरा भारत महान
आज भी है वही जूता लात
न हम बदले हैं न हालात
सिर्फ़ सफ़ेद हो गए चार बाल
क्या इस लिए मनाएँ नया साल

अभी हमारा मन
इस चक्कर से नहीं था निकल पाया
तभी हमारा बेटा हमारे पास आया
बोला पापा क्या आप
इस साल भी रोज़ आफ़िस से लेट आओगे
हमारे साथ बिल्कुल टाइम नहीं बिताओगे
और आ के सारा टाइम सिर्फ़ टीवी निहारोगे
आफ़िस का सारा गुस्सा भी घर पर उतारोगे
सच कहूँ
जो साथ ले के चलते हैं दुनिया के ग़म
उनकी उम्र हो जाती है दस साल कम
क्या फ़र्क पड़ता है कि क्या होगा कल
खुश रहो आज जियो हर पल
जानते हैं मैंने ये पिटारा क्यों खोला है
क्योंकि चार दिन हो गए
आपने मुझे अभी तक हैप्पी न्यू इयर नहीं बोला है

तब हमें ये समझ में आया
कि कुछ बदलने के लिए हर पल मनाना बहुत ज़रूरी है
और हर खुशी बिना अपनों के साथ के अधूरी है
सो इस लिए आप को विश करता हूँ डियर
नव वर्ष की शुभकामनाएँ हैप्पी न्यू इयर

सरदार तुकतुक

  

साल नया आया

साल नया आया
साब्ज़ियाँ ख़रीद कर हमने
लौकर में रख ली हैं
कुछ की तो
एफ.डी. भी कर लीं हैं।
पाँच साल के डिपाजिट पर सरकार एक आलू मुफ़्त देने वाली है
पर उस पर भी
छिलके टैक्स में लेने वाली है।
ए दोस्त ये बात बेमानी है
कि सरकार अपनी कंगाली पर ही
रोने वाली है।

अनिल सेठ "जवाब"

अभिनंदन २००४

भेजा ई-मेल
पूछा ओस्लो और अलास्का से
कैसा है नव वर्ष
कैसा रहा गत वर्ष
बोला बेहतर है
पूछो एस्किमो से
ध्रुवप्रदेश में छूट रहा था
रंगबिरंग अग्नि प्रदर्श
हिमखंड टूट कर बिखर रहा था
मंगल ग्रह से पूछा
तो वह चिहुँक उठा
देखो तेरे घर से आया
कौन है उतरा मेरे प्रांगण
आकाश गंगा और
ब्रह्मांड के सूर्येत्तर महासूर्य से
रेडियो भाव में पूछा'
तो रेडियो तरंग को शून्य पर

टिका हुआ ही पाया
होनोलुलू और होकाइडो के
मछुआरों को
चंद्रज्योत्स्नास्नात जलगात पर
मोटर ट्राली कसते पाया
भूकंपघात से त्रस्त निपात
'बम' शहर को थोड़ा सहलाया
पाया खुले आकाश के नीचे
आँसू व सिहरन भी ठहर गई है
गुलमर्ग खिलनमर्ग में
हिम क्रीड़ा  यौवन खिलखिलाकर
मेरी ओर हिमकंदुक उछाल कर बोली
'सारे जहाँ से अच्छा
हिंदोस्तां हमारा'
मैं रम्यकपर्दिनि शैलसुता
हिम क्रीड़ा में
किस के साथ है मेरी तुलना समता
उत्तर अभिमुख अयन अंश पर
पूरे भूमंडल को
सर्द ठिठरन में ठिठका पाया
तब भी दिनमान का
स्वर्ण हिमपाखी
सत्वर उड़ता जाता
आओ हम सब
धरती को स्वर्ग बनाएँ
ओजोन परत में
कुछ रफू कराएँ
व्यापार विस्तार महत्वाकांक्षा तज
आतंकमुक्त चंद्र मंगल की ओर
धीरे-धीरे कदम बढ़ाएँ
हर दिन नव वर्ष के
प्रेम मंगल गीत हम गाएँ

विनोद कुमार  

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter