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नव वर्ष अभिनंदन

नव वर्ष का कार्ड

मेरे साथ था एक छोटा - मोटा जुलूस
जब मैंने पहली बार
छोड़ा था देश
नादान दोस्तों से लेकर
दानेदार दुश्मन तक
सभी आए थे स्टेशन तक छोड़ने मुझे।
आंखों में आंसू
और उनके आगे थी मेरी धुंधलाती दुनिया
जो ट्रेन के चलते ही
दिखने लगी थी साफ र्साफ।

फूल मालाएँ और
बाँहों के बन्धन
सबकुछ बहुत भावुक
और बहुत था करूण।

मैंने आख़िर तक
की भी बहुत कोशिश
कि मां ने जो
विदा के समय लगाया था तिलक
दही और चावल का
वह न पुँछे।

मगर क्या हो पाया वैसा
जहाज में चढ़ने से पहले
बहुत ज़ोर से उठी हूक
उमड़े आँसू और फिर
धूमिल होने लगीं
धीरे-धीरे करूण-कठोर स्मृतियाँ।

बरस-दर-बरस
गए बीत
आते जाते हिन्दुस्तान
आना जाना मेरा बन गया एक ढर्रा
अब न कोई
एयरपोर्ट आता है
न स्टेशन।

अब नहीं लिखता कोई
मुझे याद करते भीगे पत्र
नहीं भेजता कोई
नव वर्ष का कॉर्ड
और अपनी ताज़ा तस्वीर।
बारह वर्ष तो हो गए
यह वक़्त एक युग से कम तो नहीं $
नहीं मालूम मुझे
कि मैं और मेरी दुनिया में
कौन हो गया है अकेला।

--कृष्ण बिहारी

  

नव वर्ष में-

हुशयारियों से बचना
ऐयारियों से बचना
ऊपर से दिखावे के
आभारियों से बचना

अच्छे हैं बेर जूठे
जो प्रेम से खिलाये
स्वारथ की दावतों के
व्यापारियों से बचना

जो शोर तो मचाते
पर ज़ोर ना लगाते
सहकारिता में ऐसे
हुंकारियों से बचना

मौका सदा टटोलें,
मुँह देखी बात बोलें
गंगा में हाथ धोते
दरबारियों से बचना

संवेदना जगाने
के हैं कई बहाने
दिल की जगह गले की
सिसकारियों से बचना

वैसे तो ज़माने में
उपचार अनेकों हैं
अच्छा है उससे पहले
बीमारियों से बचना

वीरेन्द्र जैन
२८ दिसंबर २००९

 

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