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नए बरस की सोन घड़ी
 

आन खड़ी द्वारे पर मेरे
नए बरस की सोन घड़ी

बीते कल को गले लगाया
सुबह सवेरे विदा किया
प्रेम नेह से भरी पोटली
डलिया में आभार दिया
जाने कितनी दूर डगर है
अखियाँ – बाणी भरी –भरी

नियम जगत का रीत यही
पुरखों ने यही बात कही
समय बटोही रुका न रोके
पलछिन धारा नित्य बही
आगत के स्वागत में नभ से
स्वर्ण किरण की लगी झड़ी

पाहुन को बाहों में भर कर
आदर और सत्कार किया
रोली-चन्दन भाल सजाकर
गुड मिश्री का थाल दिया
विश्वासों की मौली बाँधी
आशाओं की पुष्पलड़ी

देहरी लाँघ के आई घर में
नए बरस की पुण्य घड़ी

शशि पाधा
 

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