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नया क्या साल में है
 

नया तो है मगर सच में नया क्या साल में है
यहाँ कल भी जहाँ था जो उसी तो हाल में है !

मेरे पाँवों तले फिसलन तेरी मखमल बिछी राहें
अदा मेरे बहकने में कि तेरी चाल में है !

मेरी मेहनत मशक़्क़त भी नहीं ये इल्म दे पाती
कि रोटी में नमक ज़्यादा कि पानी दाल में है !

मेरी ख़ातिर बचा ही कुछ नहीं दरियाओं धारों में
हरेक छोटी बड़ी मछ्ली तेरे ही जाल में है !

रखा है आज कैसी प्यास में शब को सितारों ने
खिला यूँ चाँद जैसे फूल सूखी डाल में है !

--अश्विनी कुमार विष्णु
३१ दिसंबर २०१२

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