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आ रहा नव वर्ष
 

भ्रष्टता की
धुन्ध में डूबा हुआ नव वर्ष
आ रहा लेकर नया
अहसास

एक असमंजस
नयन में आँक कर
आ रहा
भीषण समय को लाँघ कर
कुछ खरोंचें देह पर
आतंक की
किन्तु चेहरे पर नया
उल्लास

वक्त की
प्रतिकूलता को जान कर
बैठकर
आया नहीं नभयान पर
सफर बस का भी
नहीं वश में
क्योंकि जरजर है सड़क
इतिहास

कर सका
न रेलयात्रा आज तय
विषखुरानी का
रहा हो स्यात भय
आ रहा पैदल मगर
स्मित अधर
पांव में पहने हुए
आकाश

पं. गिरिमोहन गुरु
३१ दिसंबर २०१२

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