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अभी चीखता साल गया है
 
धूप ओढ़ाई
चौबारे पर,
अँगना बोई बहार

गई रैन सपने
जो देखे
कुछ भोगे बहु
रहे अलेखे
नूतन - वर्ष
पाहुना आया
द्वारी चलूँ बुहार

खनखन गाएँ
मँजीरे घर-घर
बिटिया पुलक
फूल सी झर-झर
पलक मेरी हों
खुशियाँ तेरी
पाहुन की मनुहार

-प्रवीण पंडित
३० दिसंबर २०१३

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