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हौसलों के गीत गाओ
 
साल नूतन आ गया है कुछ नया करके दिखाओ
स्वप्न आँखों में सजाकर हौसलों के गीत गाओ

द्वेष, कुंठा, खूँ - खराबा रात्रि गहराने लगी है
लाख गहराये अँधेरा एक दीपक तुम जलाओ

तोड़ दो खामोशियों को जुल्म को सहना नहीं है
जुल्म का हर वार रोको भीत नफरत की हटाओ

खिड़कियों से झाँकती जो एक टुकड़ा धूप छनकर
आस की वैसी किरण बन, हर तिमिर जग से मिटाओ

दुर्गुणों का अंत हो, हो अंतरात्मा की सफाई
देश में चैनो अमन हो, राग मिलकर गुनगुनाओ

नव सुबह का खुश नजारा, हर पनीली आँख देखे
वेदना के स्वर मिटाकर इक हँसी बन खिलखिलाओ

चिलचिलाती धूप जब पाँवों में डाले बेड़ियाँ तब
फिर कहे शशि छंद रचकर जय नवल की गुनगुनाओ

- शशि पुरवार
५ जनवरी २०१५

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