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साल नया
 
साल नया जब भी आता है
सबका मन खिल खिल जाता है

गहन धुँध की चादर ओढ़े
कुदरत का मन इठलाता है

कुछ अच्छा करने की खातिर
जोश नया इक जग जाता है

भोर भए कलियाँ मुस्कातीं
सूरज किरणें बिखराता है

चिड़िया गाती गीत मधुर सा
अंतर तक मन को भाता है

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
५ जनवरी २०१५

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