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खोज
 
उदास पीले पत्ते
ठहरी ओस की बूँदें
कुहासे में विचरता सन्नाटा
रात भर की कोशिश से न सुलग पाया धुआँ
उठते ही पकड़ लेते हैं हाथ
इस समय बस यही गर्म है
एक रास्ता अभी अभी
चला गया है
आने वाली अनिश्चितता की खोह में
पगडंडी की धूल पाँव पड़ती है
कुछ देर और रूक जाते
वहाँ हैं कुछ चिह्न जिन्हें सहलाते हुए
आँखों में धुन्धलाहट भर रही है
यह सफ़र भी ख़त्म होगा
फिर एक नया सफ़र
सूरज भी देर सवेर चढ़ ही जायेगा
पक्के इरादों की सीढ़ी
वहाँ तक
जहाँ पहुँच कर ख़त्म हो जाती है ऊँचाई
नहीं पूरी होती है खोज
एक वर्ष बीत रहा है
जब मैंने वादा किया था
उससे मिलने का जो मेरे मन में रहता है
आज फिर देता हूँ अपने आप को
एक और नया वर्ष।

- परमेश्वर फुँकवाल
५ जनवरी २०१५

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