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नया दिन
 
एक नई तारीख
और बदला समय!
सूर्य निकला
पूर्व से!
और स्वर्ण की नदियाँ बही!
थाम करके बाजुओं में
रात को!
गुम हुआ आखिरी तारा
सुबह का!
एक दिन बासी हुआ!
फिर गठा नव मंत्रिमंडल
आतिशी दिनमान का!
लू थपेड़ों का
समय तय हो गया
पंचांग से!
ज्योतिषियों ने भाग्य
दिन भर का गढ़ा!
रश्मि रथ के सात
घोड़ो पर
उजाले का सफर!
शब्द बेधी बाण से
मध्याह्न तक!
स्याहियाँ घनघोर जंगल में
छुपी!
तन नदी का सूख कर
आधा हुआ!
धान की बाली में दाना बन खिला
खेतिहर
किसानों का पसीना!
धूप ने इतिहास के
पन्ने लिखे!
तेज किरणों का
हुआ मध्यम तभी
जब अंकुरित
कण-कण हुआ
और
प्राण जन-जन का हरा!

- रंजना गुप्ता
५ जनवरी २०१५

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