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अभिनंदन नव वर्ष का |
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(१)
अभिनंदन नववर्ष का, हृदय-हृदय हो हर्ष।
मनोकामना पूर्ण हो, सबका हो उत्कर्ष।
सबका हो उत्कर्ष, सितारे बरसें जग में
बिछें सुगंधित पुष्प, सभी के जीवन-मग में।
मनुज करे चहुँओर, पुण्यकर्मों का वंदन
द्वेषभाव का अंत, प्रेम का हो अभिनंदन।
(२)
आनेवाले साल में, पूरे हों सब ख्वाब।
इच्छा है मन में यही, अब तो खिलें गुलाब।
अब तो खिलें गुलाब, अंत हो बंजरता का
आए लहर नवीन, नाश कर दे जड़ता का।
मौसम सदाबहार, रहें हर्षानेवाले
सार्थक हो ये जन्म, रुचें पल आनेवाले।
(३)
किश्तों में उलझे पड़े, सपने हैं बेहाल।
सुनना उनकी भी जरा, ओ रे आते साल।
ओ रे आते साल, हमारा दिल रख लेना
बनी रहे मुस्कान, वजह इतनी दे देना।
मन में हो संतोष, प्रेम छलके रिश्तों में
बढ़े न दुख का ब्याज, जिंदगी की किश्तों में।
(४)
मन में फिर से आस का, पंछी भरे उड़ान।
रहे नहीं नववर्ष में, वन कोई सुनसान।
वन कोई सुनसान, गुँजे सबमें ही कलरव,
नाचें मस्त मयूर, मनें हिलमिल सब उत्सव।
गीत सुनाए चाँद, रात आकर आँगन में
क्षण-क्षण नयी उमंग, हिलोरें ले तन-मन में।
(५)
बीता फिर इक साल अब, होती सोच बुजुर्ग।
बनने को है खंडहर, इच्छाओं का दुर्ग।
इच्छाओं का दुर्ग, हटाता खुद से पहरे
भूला कोई राह, शौक से आकर ठहरे।
जिसने साधा मौन, वही हर रण में जीता
काँटों का भी दौर, फूल सा उसपर बीता।
- कुमार गौरव अजीतेन्दु
५ जनवरी २०१५ |
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