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नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन
 
प्रेम समर्पण उष्म भाव को समझो अक्षत रोली चन्दन
साँसे धड़कन बनी पुजारी ये करने आयी हैं वन्दन
इन सब की ये अभिलाषा है तुम जग का कल्याण करो
शत शत नमन प्रणाम दंडवत नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन

आदर बिन कैसे तय होगी दूरी केवल दो ही पग की
हम सब शीश झुका कर कर दें दूर सभी बाधाएँ मग की
आओ झूमें नाचें गायें हम सब मिल कर मौज़ मनायें
वर्ष नया तो हर्ष नया ये रीत पुरानी है इस जग की

खिलीं बहारें तो काँटे भी महके सज धज फूल हुए
दुर्दिन के जब पड़े थपेड़े टूटे बिखरे धूल हुए
अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा कुछ करके दिखला जाना
वो जो चला गया उसके तो सब वादे निर्मूल हुए

नव पल्लव नव पाँखुरी नव लतिका नव पात
लाया है नव वर्ष फिर खुशियों की सौगात
जगमग हो जाये जगत हर हालात इस वर्ष
नवल स्वप्न ले उदित हो सुखमय धवल प्रभात

- अनिमेष शर्मा
५ जनवरी २०१५

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