भावना में दीन दुखियों की
समाहित पीर हो
याचना में पतित पावन सा प्रवाहित नीर हो
साधना में वासना के मुक्त हों अनुबंध सारे
तब शुभित नववर्ष की समुचित शुचित तस्वीर हो
ज्ञान के गुंजित गगन में, प्रस्फुटित उत्कर्ष हो
भाव के भूषित भवन में, शुचित प्रमुदित हर्ष हो
दर्द दीनों का हृदय में, दीप बन जलता रहे
भारती के भाल भूषण नव सृजित नववर्ष हो
हम गमों के बीच खुशियों को सजाना जानते हैं
राष्ट्र हित माँ भारती पर सिर कटाना जानते हैं
हम सृजक हैं कर्म भू के, भाव सरिता उर उमड़ती,
देश हित नववर्ष में कुछ कर दिखाना जानते हैं
मन मन्दिर में ज्ञान के जलते दीप हजार
अंतर्मन में झाँक कर देखो तो इक बार
अभ्यागत् नववर्ष पर मन में लें संकल्प,
कर्मयोग की साधना मनुज करे इक बार
- अनुपम आलोक
५ जनवरी २०१५ |